गठबंधन के बाद भी फेल: उद्धव और राज को BEST में मिली करारी हार

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उद्धव-राज ठाकरे का गठबंधन: बीईएसटी चुनाव में हार के बावजूद बीएमसी की जंग की पूरी कहानी

# उद्धव-राज ठाकरे का गठबंधन: बीईएसटी चुनाव में हार के बावजूद बीएमसी की जंग की पूरी कहानी

                     महाराष्ट्र राजनीति

महाराष्ट्र की सियासत, खासकर मुंबई में, उस समय से चर्चा में है जब उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे ने अपनी पुरानी दुश्मनी को दफन कर एक गठबंधन बनाने का फैसला किया। वर्षों की रंजिश के बाद, उनका एक साथ आना मराठी अस्मिता और विपक्षी राजनीति के लिए एक बड़ा बदलाव माना जा रहा था। लेकिन हाल ही में हुए बीईएसटी (बृहन्मुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट) कर्मचारी सहकारी क्रेडिट सोसाइटी चुनाव के नतीजों ने सबको चौंका दिया। उद्धव-राज के संयुक्त पैनल को एक भी सीट नहीं मिली। यह हार, उनके जुलाई 2025 में गठबंधन की घोषणा के बाद आई, जो आगामी बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनावों के लिए उनकी संभावनाओं पर सवाल उठाती है। इस ब्लॉग में हम पूरी कहानी को उजागर करेंगे: गठबंधन का पृष्ठभूमि, बीईएसटी चुनाव में करारी हार, हार के कारण, और महाराष्ट्र की सियासत के लिए इसका क्या मतलब है।

## ठाकरे परिवार की विरासत: रंजिश से सुलह तक

ठाकरे परिवार का नाम महाराष्ट्र में शिवसेना और मराठी राष्ट्रवाद का पर्याय रहा है। बाल ठाकरे ने 1966 में शिवसेना की स्थापना की थी। उनके निधन के बाद 2012 में, पार्टी में आंतरिक फूट पड़ी। राज ठाकरे, बाल के भतीजे, ने 2005 में नेतृत्व और विचारधारा को लेकर मतभेदों के कारण महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) बनाई। इससे उद्धव और राज के बीच कड़वाहट भरी दुश्मनी शुरू हुई।

2025 में, 2024 के विधानसभा चुनावी नतीजों के बाद राजनीतिक समीकरण तेजी से बदले। शिवसेना (यूबीटी) सिर्फ़ 20 सीटों पर सिमट गई और मनसे को एक भी सीट हासिल नहीं हो पाई। इस स्थिति ने दोनों भाइयों—उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे—को नज़दीक आने पर मजबूर किया। आखिरकार 5 जुलाई 2025 को मुंबई के एनएससीआई डोम में हुए एक भव्य कार्यक्रम में दोनों ने हाथ मिलाकर गठबंधन की घोषणा कर दी। इस नए गठबंधन का मक़सद मराठी मतदाताओं को एकजुट करना, स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य किए जाने जैसे निर्णयों का विरोध करना और बीजेपी नेतृत्व वाले महायुति मोर्चे के सामने एक मज़बूत "मराठी शक्ति" खड़ी करना था। बीएमसी और अन्य स्थानीय निकाय चुनावों को ध्यान में रखते हुए यह उनकी पहली बड़ी संयुक्त रणनीतिक पहल मानी गई।

बीईएसटी क्रेडिट सोसाइटी, जिसमें 15,000 से अधिक मराठी कर्मचारी (ज्यादातर बस कंडक्टर, ड्राइवर और स्टाफ) हैं, इस गठबंधन का पहला इम्तिहान माना गया। शिवसेना (यूबीटी) ने नौ साल तक इस सोसाइटी पर कब्जा जमाए रखा था, जिससे यह एक प्रतीकात्मक युद्धक्षेत्र बन गया।

## बीईएसटी चुनाव में करारी हार: ठाकरे पैनल का सूपड़ा साफ

बीईएसटी कर्मचारी सहकारी क्रेडिट सोसाइटी का चुनाव 18 अगस्त 2025 को हुआ, जो नौ साल बाद आयोजित हुआ। नतीजे 20 अगस्त को घोषित हुए। यह सोसाइटी, जो 84 साल पहले स्थापित हुई थी, बीईएसटी कर्मचारियों के लिए एक वित्तीय सहकारी संस्था है। इसमें 21 सीटों के लिए 15,123 मतदाताओं ने वोट डाला, जिसमें 83.69% मतदान हुआ।

  • प्रतिद्वंद्वी: उद्धव-राज गठबंधन ने 'उत्कर्ष' पैनल उतारा। उनके खिलाफ थे शशांक राव का पैनल (हाल ही में बीजेपी के साथ गठजोड़) और 'सहकार समृद्धि' पैनल, जिसे बीजेपी नेता प्रसाद लाड और प्रवीण दारेकर, साथ ही एकनाथ शिंदे की शिवसेना का समर्थन प्राप्त था।
  • नतीजे: चौंकाने वाले परिणाम में, उत्कर्ष पैनल को एक भी सीट नहीं मिली। शशांक राव के पैनल ने 14 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी-समर्थित पैनल ने 7 सीटें हासिल कीं। प्रत्येक विजेता उम्मीदवार को 4,000 से अधिक वोट मिले, जो ठाकरे ब्रांड की स्पष्ट अस्वीकृति को दर्शाता है।
  • विवाद: मतदान ज्यादातर शांतिपूर्ण रहा, लेकिन भारी बारिश ने मतगणना में देरी की। शिवसेना (यूबीटी) नेता सुहास सामंत और एमएनएस के संदीप देशपांडे ने आरोप लगाया कि विपक्ष ने "धन-बल" और नकदी बांटकर वोटरों को प्रभावित किया। देशपांडे ने इकोनॉमिक ऑफेंस विंग (ईओडब्ल्यू) जैसी सरकारी एजेंसियों के हस्तक्षेप का भी दावा किया।

## हार के कारण: कर्मचारियों की नाराजगी और सियासी चालबाजी

उद्धव-राज गठबंधन इतनी बुरी तरह क्यों हारा? इसके पीछे कई कारण थे:

  1. कर्मचारियों की नाराजगी: बीईएसटी कर्मचारी शिवसेना (यूबीटी) की पुरानी नीतियों से नाराज थे, जब वह बीएमसी (2022 तक) नियंत्रित करती थी। इनमें निजीकरण, कर्मचारी कल्याण की उपेक्षा, सातवें वेतन आयोग के लाभ में देरी, रिटायर कर्मचारियों को ग्रेच्युटी न मिलना, और ठेकेदारों को फंड डायवर्ट करना जैसे मुद्दे शामिल थे। शशांक राव, जो पहले शिवसेना में थे और अब बीजेपी के साथ हैं, ने इस नाराजगी का फायदा उठाया। उन्होंने कहा, "कर्मचारी बनाए गए हालात से बहुत नाराज थे।"
  2. देर से शुरू हुआ प्रचार: राव के पैनल ने स्वीकार किया कि उनका प्रचार देर से शुरू हुआ, फिर भी वे हावी रहे। इससे पता चलता है कि ठाकरे गठबंधन ने जमीनी असंतोष को कम आंका।
  3. महायुति की ताकत: बीजेपी और शिंदे सेना के समर्थन ने उनके पैनल को बढ़त दी। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा, "यह ठाकरे ब्रांड की अस्वीकृति है।" एकनाथ शिंदे ने तंज कसते हुए कहा, "लोग उन लोगों को पसंद करते हैं जो काम करते हैं, न कि घर पर बैठने वालों को।"
  4. गड़बड़ी के आरोप: विपक्ष ने दावा किया कि बीजेपी ने सरकारी मशीनरी और धन-बल का इस्तेमाल किया, खासकर कल्याण और नवी मुंबई में। बीजेपी प्रवक्ता केशव उपाध्ये ने ठाकरों को "दो शून्य" कहकर खारिज कर दिया।

यह हार 2024 के विधानसभा चुनावों में ठाकरों के खराब प्रदर्शन के बाद आई, जिसने उनकी मराठी वोटरों को लामबंद करने की क्षमता पर और सवाल उठाए।

## बीएमसी चुनाव के लिए क्या मतलब?

बीएमसी चुनाव, जिसमें 227 कॉर्पोरेटर सीटों के साथ मुंबई का ₹45,000 करोड़ का बजट नियंत्रित होता है, 2025 के अंत या 2026 की शुरुआत में होने की उम्मीद है। बीईएसटी की हार कई संकेत देती है:

  • मराठी वोटों का बंटवारा: उद्धव-राज का गठबंधन मराठी वोटों को एकजुट करने के लिए था, लेकिन हार से लगता है कि वोट शिवसेना (यूबीटी)-एमएनएस, शिंदे सेना और अन्य के बीच बंट सकते हैं, जिससे बीजेपी की गैर-मराठी वोटर बेस (गुजराती, उत्तर भारतीय) को फायदा होगा।
  • गठबंधन की मजबूती: हार के बाद, राज ठाकरे की फडणवीस से मुलाकात ने गठबंधन में दरार की अटकलों को जन्म दिया। हालांकि, उद्धव ने गणेश चतुर्थी (27 अगस्त 2025) पर राज से मुलाकात की, लेकिन आंतरिक असंतोष साफ दिखता है।
  • विपक्ष की रणनीति: विश्लेषकों का कहना है कि यह व्यापक विपक्षी मोर्चे के लिए झटका है। बीएमसी के लिए सीट-बंटवारे की बातचीत बाकी है, और यह हार शिंदे के लिए जगह कम कर सकती है, जबकि बीजेपी की ताकत बढ़ा सकती है।

हालांकि, बीईएसटी (एक छोटी सहकारी संस्था) की तुलना बीएमसी (एक विशाल निकाय चुनाव) से करना पूरी तरह सही नहीं है, लेकिन यह प्रतीकात्मक हार ठाकरे एकता की कहानी को कमजोर करती है।

## निष्कर्ष: महाराष्ट्र की सियासत में सबक

उद्धव-राज का गठबंधन, जो मराठी गौरव को पुनर्जनन की जरूरत से बना, बीईएसटी चुनाव में बुरी तरह विफल रहा। कर्मचारियों की नाराजगी से लेकर धन-बल के आरोपों तक, यह हार उनकी कमजोरियों को उजागर करती है, जो बीएमसी चुनावों में भारी पड़ सकती है। क्या ठाकरे इस झटके से उबर पाएंगे, या यह उनके एकजुट मोर्चे का अंत है? इसका जवाब वक्त और वोटर देंगे।

अगर आप महाराष्ट्र की सियासत को फॉलो करते हैं, तो अपडेट्स के लिए बने रहें। आप क्या सोचते हैं—क्या ठाकरे वापसी कर पाएंगे? कमेंट्स में बताएं!

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